कोई व्यक्ति संसार में जन्म ले ले, और यह सोचे, कि जीवन में समस्याएं नहीं आएंगी, या नहीं आनी चाहिएं। किसी प्रकार का कोई दुख नहीं आना चाहिए, तो "ऐसा होना असंभव है। और ऐसा सोचना भी गलत है।"
ऐसा सोचना गलत क्यों है? इसलिए कि व्यक्ति को संसार के बारे में ठीक से ज्ञान नहीं है। वह संसार को और इसके मूल कारण प्रकृति को ठीक प्रकार से नहीं जानता। "प्रकृति में तीन प्रकार के सूक्ष्मतम कण हैं, जिन्हें सूक्ष्मतम परमाणु कहते हैं। उनके नाम हैं, सत्त्व रज और तम। इन तीन प्रकार के परमाणुओं को मिलाकर 'प्रकृति' कहलाती है।"
"इस प्रकृति में तीन में से जो एक कण/परमाणु है, सत्त्व। वह अच्छा है। वह सुख देता है। दूसरा कण है रज, यह खराब है, यह दुख देता है। और तीसरा कण है तम, यह भी खराब है। यह मूर्ख बनाता है, अविद्या को उत्पन्न करता है। आलस्य नींद और नशा आदि को उत्पन्न करता है।" "इन्हीं तीनों के समुदाय रूप प्रकृति से सारा जगत ईश्वर ने बनाया है। जगत में कोई भी बना हुआ पदार्थ ऐसा नहीं है, जिसमें इन तीनों का सम्मेलन/सम्मिश्रण न हो। तीनों के सम्मेलन/सम्मिश्रण से ही सारे जगत के पदार्थ बनते हैं।"
सूर्य चंद्रमा पृथ्वी तारे आदि पदार्थ, तथा खनिज पदार्थ, पेट्रोलियम पदार्थ औषधि वनस्पति फल फूल शाक सब्जी इत्यादि, इन सब पदार्थों में इन्हीं तीन का सम्मिश्रण है। सृष्टि का एक नियम है कि "जैसे गुण कारण द्रव्य में होते हैं, वैसे ही कार्य द्रव्य में भी आते हैं।" जब कारण द्रव्य प्रकृति में रज और तम कण हैं, वे दुख देने वाले तथा नशा उत्पन्न करने वाले हैं, तो ये कण जगत के पदार्थों में जहां भी होंगे, वहां अपना प्रभाव तो दिखाएंगे ही। "इसलिए प्रत्येक वस्तु में रज और तम विद्यमान होने के कारण, वह वस्तु कभी तो दुख देती है, और कभी नींद आलस्य नशा आदि उत्पन्न करती है।"
हां, उन वस्तुओं में सत्त्व नामक कण भी है, इसलिए वे वस्तुएं कुछ-कुछ सुख भी देती हैं। "अब आत्मा का स्वभाव ऐसा है, कि वह केवल सुख को चाहता है। और केवल सुख, प्रकृति के पदार्थों से मिल नहीं सकता। क्योंकि ये सांसारिक वस्तुएं, रज और तम के कारण दुख और मूर्खता को भी उत्पन्न करती हैं।" इस रहस्य की बात को संसार के लोग जानते नहीं। वे ऐसा मानते हैं, कि "संसार में बहुत सुख है, और केवल सुख ही सुख है। यदि धन संपत्ति और कुछ संगठन शक्ति हो, तो फिर कोई समस्या ही नहीं है।" "ऐसे लोग ऊपर बताई रहस्य की बातें नहीं जानते। इसलिए वे संसार में रहते हैं, और सदा यहीं रहना चाहते हैं। वे सांसारिक वस्तुओं के पीछे भागते रहते हैं। परंतु परिणाम में, अंत में दुख ही हाथ लगता है।" इसलिए ऐसा न सोचें, कि "संसार में आ गए, तो सदा सुख ही मिलेगा। जबकि यहां तो कदम कदम पर समस्याएं हैं। जैसे कि भूख प्यास गर्मी ठंडी सर्दी जुखाम टीबी कैंसर डेंगू करोना आंधी तूफान बाढ़ भूकंप रेल विमान दुर्घटनाएं रोग वियोग झूठे आरोप लगना निंदा चुगली करना आदि।"
अब जो समस्याएं सामने आएंगी, तो उनसे अपना बचाव करने के लिए युद्ध भी करना ही पड़ेगा। "यदि आप समस्याओं से युद्ध नहीं करेंगे, तो वे आप को दबाकर मार डालेंगी। यदि आप उनसे युद्ध करेंगे, तो आप उन्हें दबाकर मार डालेंगे। तब आप जीत जाएंगे। तभी कुछ थोड़ा सुख मिल पाएगा। परन्तु पूरा सुख तो फिर भी यहां नहीं मिलेगा। वह तो मोक्ष में ही मिलेगा।"
"इसलिए जब तक आप जीवित हैं, तब तक समस्याओं से संघर्ष करें। प्रसन्नता और उत्साह से से संघर्ष करें। संघर्ष के अतिरिक्त समस्याओं से बचने का कोई उपाय नहीं है। संघर्ष कर के इन समस्याओं को जीतें, और यथासंभव सुखपूर्वक जीएं, तथा मोक्ष के लिए भी पूर्ण परिश्रम करते रहें। इसी में जीवन की सफलता और बुद्धिमत्ता है।"