बचपन और शिक्षा
सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नाडियाड गाँव में हुआ। उनके पिता किसान थे और माता एक धार्मिक महिला थीं। बचपन से ही वल्लभभाई बहुत साहसी और निडर थे।
कहा जाता है कि एक बार बचपन में जब वे बीमार हुए तो गाँव के वैद्य ने कहा कि फोड़ा फूटने के लिए गर्म लोहे की सलाख से चीरा लगाना पड़ेगा। यह सुनकर बच्चे रोने लगे, लेकिन वल्लभभाई ने बिना डरे अपने हाथ पर खुद ही सलाख रख दी और कहा –
👉 “डरने की कोई बात नहीं, मैं सह लूँगा।”
यह घटना उनके अटल साहस और दृढ़ता का पहला प्रमाण थी।
युवावस्था और करियर
उन्होंने वकालत की पढ़ाई की और सफल बैरिस्टर बने। लेकिन महात्मा गांधी के स्वतंत्रता आंदोलन से प्रेरित होकर उन्होंने सुख-सुविधाओं का जीवन छोड़कर स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया।
किसानों के हक की लड़ाई में भी पटेल हमेशा आगे रहे। खासकर खेड़ा सत्याग्रह और बारडोली सत्याग्रह में उनके नेतृत्व ने उन्हें “सरदार” की उपाधि दिलाई।
आजादी के बाद लौह इच्छाशक्ति
भारत की आजादी के बाद सबसे बड़ी चुनौती थी – 562 देशी रियासतों का भविष्य। कई राजा भारत या पाकिस्तान में शामिल न होकर स्वतंत्र रहना चाहते थे।
-
पटेल ने अपनी कूटनीति, समझदारी और कड़े फैसलों से इन रियासतों को भारत में मिलाया।
-
जूनागढ़, हैदराबाद और कश्मीर जैसे कठिन मामलों में उन्होंने बिना झुके कठोर निर्णय लिए।
-
उन्होंने दिखा दिया कि अगर राष्ट्र की एकता के लिए कठोरता दिखानी पड़े तो पीछे नहीं हटना चाहिए।
लौह पुरुष क्यों कहा गया?
-
बचपन से ही उनका साहस लोहे जैसा था (फोड़े की घटना इसका उदाहरण है)।
-
वे फैसलों में बेहद सख्त और दृढ़ इच्छाशक्ति वाले थे।
-
भारत के एकीकरण में उन्होंने जिस तरह लोहे की मजबूती दिखाई, उसी वजह से उन्हें “लौह पुरुष” (Iron Man of India) कहा गया।
स्टैच्यू ऑफ यूनिटी
उनकी इसी लौह इच्छाशक्ति और राष्ट्रनिर्माण में योगदान को सम्मान देने के लिए 31 अक्टूबर 2018 को गुजरात के केवड़िया में उनकी 182 मीटर ऊँची प्रतिमा “Statue of Unity” बनाई गई, जो आज विश्व की सबसे ऊँची प्रतिमा है।
![]() |
स्टैच्यू ऑफ यूनिटी |