परमाणु भौतिकी (Atomic Physics)
परमाणु वे सूक्ष्मतम कण है , जो रासायनिक क्रिया
में भाग ले सकते है , परन्तु स्वतन्त्र अवस्था में नहीं रहते परमाणु मुख्यत: तीन
मूल कण इलेक्ट्रॉनिक,प्रोटान व से मिलकर बना होता है परमाणु के केंद्र में एक
नाविक होता है , जिसमे प्रोटान एवं न्युट्रान रहते है इलेक्ट्रान नाभिक के चारो ओर
चक्कर लगाते है परमाणु में प्रोटान एवं इलेक्ट्रान की संख्या समान एवं आवेश विपरीत
होते है , जिसके कारण यह उदासीन होता है
कैथोड़ किरण (Cathode Ray) –
जब विसर्जन नलिका (Discharge tube) के सिरों पर
20 किलो वोल्ट (20 kg ) का विभान्तर लगाया जाता है और उसका दाब 0.1 मिली मीटर पारे
के स्तम्भ के बराबर होता है , तो उसके कैथोड से एक इलेक्ट्रान पुंज (beam) निकलने
लगता है , इसे ही कैथोड किरण कहते है अत: कैथोड किरणे केवल उच्च उर्जा वाले
इलेक्ट्रान का पुंज है
कैथोड़ किरण (Cathode Ray) के गुण :-
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कैथोड किरण को केवल गैस का प्रयोग करके पैदा किया
जा सकता है |
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कैथोड़ किरणों के उत्पादन में विभव का स्रोत
प्रेरण कुंडली (Induction Coil ) होता है जो कम विभव के सेल से बहुत उच्च विभव
प्रदान करता है यह पारस्परिक प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करता है
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कैथोड किरण Invisible होता है और सीधी रेखा में चलती है
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कैथोड किरण ऋणात्मक होती है इसलिए ये कैथोड से
एनोड की तरफ गमन करती है ये इलेक्ट्रान की बनी होती है और अपनी सतह के लम्बवत
निकलती है |
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कैथोड किरण का वेग प्रकाश के वेग का 1/10 गुना
होता है
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यह किरण इलेक्ट्रिक एवं चुम्बकीय क्षेत्र में
विक्षेपित होती है
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यह गैसों को आयनीकृत कर देती है एवं धातु पर
उष्मीय प्रभाव दिखाती है
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कैथोड किरणें जब Electricity क्षेत्र से होकर
लम्बवत गुजरती है तो इसका रास्ता परवलयकार होता है
रेडियोसक्रियता
रेडिओसक्रियता की खोज फ्रेंच वैज्ञानिक हेनरी
बेकरल P.क्युरी एवं M.क्युरी ने किया था इस खोज के लिए इन तीनो को
संयुक्त रूप से नोबेल पुरस्कार मिला जिन नाभिको में प्रोटान की संख्या 83 या उससे
अधिक होती है वे अस्थायी होते है स्थायित्व प्राप्त करने के लिए ये नाभिक स्वत: ही
अल्फ़ा , बीटा एवं गामा किरणे उत्सर्जित करने लगाती है एसे नाभिक जिन तत्वों के परमाणुओं
में होते है उन्हें रेडिओ एक्टिव तत्व कहते है तथा किरणों की उत्सर्जन की घटना को रेडिओ
सक्रियता कहते है ,गामा किरणें , अल्फ़ा व बीटा किरणों के बाद ही उत्सर्जित
होती है राबर्ट पियरे एवं उनकी पत्नी मैडम क्युरी ने नए रेडिओ एक्टिव तत्व रेडियम
की खोज की रेडिओ सक्रियता के दौरान निकलने वाली किरणों की पहचान सर्वप्रथम 1902 ई
. में रदरफोर्ड नामक वैज्ञानिक ने की ,सभी प्राकृतिक रेडिओ सक्रीय तत्व अल्फा ,
बीटा , गामा किरणों के उत्सर्जन के बाद अंततः सीसा में बदल जाते है
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सबसे अधिक वेधन क्षमता गामा किरण की होती है
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सबसे अधिक आयनन क्षमता अल्फा किरण की होती है
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एक अल्फा किरण के निकलने से परमाणु संख्या में दो
इकाई तथा द्रव्यमान संख्या में चार इकाई की कमी होती है
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एक बीटा किरण के निकलने से परमाणु संख्या में एक
इकाई की वृद्धि होती है तथा द्रव्यमान संख्या पर पड़ने वाले प्रभाव को वर्ग
विस्थापन नियम या सोडी फाजन नियम कहा जाता है
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रेडिओ सक्रियता की माप “ G.M. counter “ से की
जाती है
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जितने समय में किसी रेडिओ सक्रीय तत्व के
परमाणुओं की संख्या आधी हो जाये ,वह समय उस तत्व के अर्ध जीवन काल कहलाता है इसे
प्राय: H.L से सूचित किया जाता है
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जीवाश्म मृत पेड़-पौधे आदि की आयु का अंकन कार्बन
-14 के द्वारा किया जाता है इस विधि में जीवाश्म या मृत पेड़ पौधे में प्राप्त
कार्बन के दो संस्थानिक 6C12 व 6C14
का अनुपात ज्ञात करके आयु का निर्धारण किया जाता है |
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द्रव्यमान – उर्जा संबंध (Mass – Energy Relation)
: 1905 ई. में
आइन्स्टीन ने द्रव्यमान एवं उर्जा के बीच एक संबंध स्थापित किया जिसे आपेक्षिता के
सिद्धांत (Theory of Relativity) कहा जाता है इसके अनुसार द्रव्यमान एवं उर्जा एक
दुसरे से स्वतंत्र नहीं है बल्कि दोनों एक दुसरे से सम्बंधित है तथा प्रत्येक
पदार्थ में उसके द्रव्यमान के कारण उर्जा भी होती है यदि किसी वस्तु का द्रव्यमान
m एवं प्रकाश का वेग c है तो इस द्रव्यमान
से सम्बद्ध उर्जा , E = mc2 होती है
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आइन्स्टीन जर्मनी में जन्मे अमेरिकी वैज्ञानिक थे
जिन्हें 1921 ई का भौतिकी में नोबेल पुरस्कार मिला
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सूर्य से पृथ्वी को लगातार उर्जा ऊष्मा के रूप
में प्राप्त हो रही है जिसके फलस्वरूप सूर्य का द्रव्यमान लगातार घटता जा रहा है
आंकड़ो के अनुसार सूर्य से पृथ्वी को प्रति Second 4x1026जूल उर्जा
प्राप्त हो रही है जिसके फलस्वरूप इसका द्रव्यमान लगभग 4x109kg प्रति Second
की दर से घट रहा है परन्तु सूर्य का द्रव्यमान इतना अधिक है की वह लगातार एक हजार
करोड़ वर्षो तक इसी दर उर्जा देता रहेगा
ब्रम्हाण्ड (Universe)
पृथ्वी को घेरने
वाली आपार आकाश तथा उसमे उपस्थित सभी खगोलीय पिंड ( जैसे – मादाकिनी , तारे, ग्रह
, उपग्रह, आदि एवं सम्पूर्ण उर्जा को समग्र रूप से ब्रम्हाण्ड कहते है | ब्रम्हांड
से सम्बंधित अध्यन को ब्रम्हाण्ड विज्ञान कहते है (Cosmology) कहते है ब्रम्हाण्ड
इतना विशाल है जिसकी हम कल्पना नहीं कर सकते इसके आकार की विशालता , इसमें तारो की
संख्या, अपर दुरी तथा द्रव्यमान का अनुमान लगाना कठिन है फिर भी बड़े परिमाण की संख्याओं
के सहारे इनका अनुमान लगाने की कोशिश की जा सकती है खगोलीय वैज्ञानिको के अनुसार
ब्रम्हाण्ड सैकड़ो अरब 1011 मन्दाकिनी है तथा प्रत्येक मन्दाकिनी में
लगभग एक सौ अरब 1011 तारे है इस प्रकार तारो की कुल संख्या 1022 के
बराबर होगी
ब्रम्हाण्ड की उत्पत्ति (Evolution of Universe ) :
ब्रम्हाण्ड के
प्राम्भ तथा इसके भविष्य के प्रश्न को लेकर अनेक सिद्धांत व्यक्त किये गये है उन
सभी सिद्धांतो में बिग बंग सिद्धांत ( Big Bang theory ) को सर्वाधिक मान्यता
प्राप्त हुई यह सिद्धांत उस समय प्रतिपादित किया गया जब खगोलीय वैज्ञानिको ने
विकसित टेलिस्कोप तथा अन्य वैज्ञानिक साधनों द्वारा प्रेक्षणों के आधार पर या बताया
गया की हमारा ब्रम्हाण्ड लगातार फैलता जा रहा है ब्रम्हाण्ड के प्रसार का सिद्धांत
डॉप्लर प्रभाव पर प्राप्त प्रेक्षण जिसे अवरक्त विस्थापन कहा जाता है , पर आधारित
है