बुद्धिमान राजा (clever King )




एक राजा थे। उस राजा की साधू-महात्मा के वेश में बड़ी श्रद्धा और निष्ठा थी. यह निष्ठा किसी किसी में ही होती हैं. वह राजा साधु-संतो को देखकर बहुत राजी होता। साधू वेश में कोई आ जाय, कैसा भी आ जाये, उसका बड़ा आदर करता बड़ा सेवा करता।💢💢💢💢💢💢💢


कहीं सुन लेता की अमुक तरफ से संत आ रहे हैं तो पैदल जाता और उनको ले आता, महलो में रखता और खूब सेवा करता। साधु जो माँगे, वही दे देता। उसकी ऐसी प्रसिद्धि हो गयी. पड़ोस देश में एक दूसरा राजा था, उसने यह बात सुन रखी थी.


उसके मन में ऐसा विचार आया की यह राजा बड़ा मुर्ख हैं, इसको साधू बनकर कोई भी ठग ले. उसने एक बहरूपिये को बुलाकर कहा की तुम उस राजा के यहाँ साधु बनकर जाओ. और उसके बारे में सभी जानकारी उसके राजधानी के बारे में, सिमा बल के बारे में, सैनिक के बारे में जानकारियाँ इकट्ठी करके लाओं साथ ही वह तुम्हारे साथ जो-जो बर्ताव करे, वह आकर मेरे से कहना।


बहरूपिया भी बहुत चतुर था. वह साधु बनकर वहाँ गया. वहाँ के राजा ने जब सुना की अमुक रस्ते से एक साधू आ रहा हैं तो वह उसके सामने गया और उसको बड़े आदर-सत्कार से अपने महल में ले आया, अपने हाथो से उसकी खूब सेवा की.


बहुरुपिया साधू की पोल खुल गई 

बहुरूपिये ने सोचा की यदि मैं इस राजा से दान स्वरुप खूब धन माँग लूँ तो फिर मुझे किसी अन्य राजा का नौकरी नहीं करना पड़ेगा मैं दूसरे राज्य में जाकर सुखपूर्वक रह सकता हूँ यह राजा तो मुझे योगी समझता हैं आसानी से धन दे भी देगा, फिर उस बहुरूपिये ने सोचा की मैं अकेले कितना धन उठा पाउँगा इसीलिए  घोड़ा भी माँग लूँगा ताकि धन ढोने में आसानी होगा।


एक दिन राजा ने उस साधु से कहा की -'महाराज!, कुछ सुनाओ।' साधू ने कहा की- 'राजन! आप तो बड़े भाग्यशाली हो की आपको इतना बड़ा राज्य मिला हैं, धन मिला हैं. आपके पास इतनी फौज हैं. आपकी स्त्री, पुत्र,  नौकर आदि सभी आपके अनुकूल हैं।


साधू का भौतिक सम्पत्तियों को इतना महत्व देना राजा को थोड़ा अटपटा लगा, साधू तो दुनियादारी धन, राज्य से उलट वैराग्य, सन्यास आदि को महत्व देते हैं यह कैसा साधु हैं जो धन-संपत्ति को महत्व दे रहें यहीं। यह तो धन का लालची जान पड़ता हैं,


राजा बहुत शिक्षित थे तथा उन्हें वेद-उपनिषद तथा शस्त्र-शास्त्र का भी ज्ञान था, वह उस बहुरूपिये साधू से धर्म के विषय पर चर्चा करने लगे वेद-उपनिषद की बात करने लगे वो बहुरुपिया सकपका गया उसका पोल खुल गया राजा ने उसे कारावास में डाल दिया।


और फिर इस राजा ने अपने बुद्धिमानी से अपने प्रजा और राज्य की रक्षा की इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती हैं की हम कितने भी नकाब लगा कर बहुरिपये बन कर अपनी पहचान छुपाने का प्रयास क्यों न कर ले हम कभी सफल नहीं हो सकते एक न एक दिन पोल खुल ही जाएगा और फिर हमें मजाक का पात्र या फिर कारावास की भी सजा भुगतनी पड़ सकती हैं


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