अपने कर्तव्य के प्रति ईमानदार रहिये


सवारियों से भरी एक बस अपने गंतव्य को जा रही थी।

तभी चलते चलते अचानक बस में कोई ख़राबी आ गई।

जब तक बस का ड्राइवर कुछ समझ पाता तब तक एक दो बड़े झटकों के साथ तेज रफ़्तार से जा रही बस रुक गयी।

 


सभी यात्री ड्राइवर पर भड़कने लगे ! जिसके मन में जो आता ड्राइवर को बकने लगा।

उसके बाद अपनी सीट से उतरकर बस की पूरी मुआयना करने के बाद ड्राइवर ने अपना पसीना पोंछते हुए सवारियों को बताया कि ब्रेक फेल हो गए थे, एक किलोमीटर पहले किसी तरह सँभालते हुए यहाँ पर रोकना ठीक लगा ,इसलिए किसी तरह गाड़ी को रोका और ..भगवान का शुक्र है कि सब बच गए !

गाड़ी बिलकुल निर्जन औऱ वीरान जगह पर खड़ी थी।आस पास पूरा सन्नाटा था।

 ये सुन सभी सवारी ड्राइवर की भूरी भूरी प्रशंसा करने लगे....

मगर थोड़ी देर में यात्रियों का आत्म ज्ञान जागृत होने लगा..

एक सवारी कहता है ....अगर यहाँ तक ले आये तो धीरे धीरे घर तक ही ले जाता... पूरा का पूरा बेवकूफ है ड्राइवर

दूसरा सवारी : मैं तो बाइक निकालने से पहले ब्रेक जरूर चेक करता हूँ...बहुत लापरवाही है इनकी।सिर्फ़ कमाने भर से मतलब है।

तीसरा : अब हमारे रहने, खाने दारू, मुर्गा का बंदोबस्त यह ड्राइवर ही करेगा...नहीं दो सब मिलकर पीटेंगे इसको

चौथा : टिकटो कें पैसे का हिसाब दो, यहाँ तक कितना लगा, कितना बचा...नहीं तो तुरंत जूता निकालूंगा ।

और बेचारा ड्राइवर सोच रहा था कि वैसे तो ये स्वार्थी जीव बचाये जाने के लायक नहीं है , मगर मुझे तो अपना फर्ज निभाना ही था ।

अपने फ़र्ज़ के प्रति ईमानदारी बहुत ज़रूरी है । कौन क्या कहता है इससे विचलित होना मूर्खता है।


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