एक बार की बात है, एक राजा अपने राजकुमार को सच्चे जीवन का अर्थ सिखाना चाहता था। उसने राजकुमार को एक साधु के पास भेजा और कहा, “जब तक तुम जीवन का सच्चा धन नहीं समझ लेते, तब तक राजगद्दी तुम्हें नहीं मिलेगी।”
राजकुमार साधु के पास गया। साधु ने उसे एक मिट्टी का दिया दिया और कहा, “इसे हर वक्त अपने साथ रखना, और जब तुम समझ जाओ कि यह दिया तुम्हें क्या सिखा रहा है, तब वापस आना।”
राजकुमार ने वह दिया साथ रखा। समय बीतता गया – कभी उसने सोचा यह दिया साधु की परीक्षा है, कभी सोचा यह शुभ चिन्ह है। लेकिन सालों बाद, एक दिन जब वह एक गरीब गाँव में भूखों और बीमारों की सेवा कर रहा था, तो वह थककर बैठा और दीये की लौ को देखने लगा।
तभी उसके मन में विचार आया –
“यह दिया बिना कुछ कहे, बिना कुछ माँगे, अंधेरे में रोशनी देता है। यह खुद जलता है, पर दूसरों को उजाला देता है। यही तो सच्चा धन है – सेवा करना, दूसरों के काम आना।”
वह उसी क्षण साधु के पास लौटा और अपनी सीख बताई।
साधु मुस्कुराया और बोला:
“अब तुम राजा बनने योग्य हो, क्योंकि तुमने जीवन का सच्चा अर्थ जान लिया – जो दूसरों के काम आए, वही सबसे धनवान है।”