लोमड़ी और खट्टे अंगूर

गर्मियों का दिन था। एक भूखी लोमड़ी खाने की तलाश में इधर-उधर घूम रही थी। बहुत देर तक घूमने के बाद भी उसे कुछ खाने को नहीं मिला। वह बहुत थक गई थी और भूख से बेहाल हो चुकी थी।

तभी उसकी नजर एक अंगूर की बेल पर पड़ी, जो एक ऊँचे पेड़ से लटक रही थी। बेल पर गहरे बैंगनी रंग के रसीले अंगूर झूल रहे थे।
लोमड़ी के मुँह में पानी आ गया। उसने सोचा,
"वाह! अगर मुझे ये अंगूर मिल जाएँ, तो मेरी भूख मिट सकती है।"

वह उछली – पर अंगूर उसकी पहुँच से बाहर थे।

फिर वह कुछ पीछे हटी, दौड़ लगाई और उछली – लेकिन फिर भी असफल रही।

उसने कई बार कोशिश की – बार-बार कूदी, उछली, फुदकी – मगर हर बार वो अंगूर तक नहीं पहुँच सकी।

अंत में, थक हारकर, लोमड़ी वहाँ से जाने लगी और बोली:
"हूँफ! ये अंगूर तो वैसे भी खट्टे हैं। मुझे नहीं चाहिए!"

और वह अपनी भूख और थकान के साथ वहाँ से चली गई।

सीख (Moral):
जो लोग किसी चीज़ को पाने में असफल हो जाते हैं, वे अक्सर उसे बुरा बताकर खुद को दिलासा देते हैं।
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