हॉरर कहानी का नाम: "तिलोकिया का बाग"

स्थान: उत्तर भारत का एक सुदूर गाँव — बसरिया
मुख्य पात्र: प्रिंस, आयुष और पवन — तीन जिगरी दोस्त।
भूत का नाम: तिलोकिया।


गर्मी की छुट्टियाँ थीं और तीनों दोस्त — प्रिंस, आयुष और पवन — शहर से अपने गाँव बसरिया आए थे। गाँव की हरियाली, शांत वातावरण और बचपन की यादें उन्हें हर साल यहाँ खींच लाती थीं।

गाँव के बाहर एक पुराना बाग़ था — तिलोकिया का बाग। बचपन से ही उन्होंने उस बाग के बारे में डरावनी कहानियाँ सुनी थीं। लोगों का कहना था कि रात होते ही वहाँ एक आत्मा घूमती है, जिसका नाम है तिलोकिया। वह बाग़ का पुराना माली था, जिसकी रहस्यमय हालत में मौत हो गई थी।


कहानी की शुरुआत:

एक शाम तीनों दोस्त आम के पेड़ के नीचे बैठे थे।

प्रिंस ने मज़ाक में कहा:
“चलो आज तिलोकिया के बाग़ में चलते हैं, डर किस बात का?”

आयुष ने हँसते हुए कहा:
“तू तो वैसे भी सबसे डरपोक है, चल मैं तो पक्का चलूंगा।”

पवन, जो हमेशा शांत रहता था, बोला:
“अगर चलना है तो रात 12 बजे चलो, वरना कोई मज़ा नहीं।”

तीनों ने शर्त लगाई — जो सबसे पहले डर के मारे भागेगा, वो सबको चाट खिलाएगा।


रात 12 बजे – तिलोकिया का बाग

जैसे ही वे बाग़ में घुसे, चारों ओर सन्नाटा था। हवा तक नहीं चल रही थी। पेड़ों की टहनियाँ अजीब तरीके से हिल रही थीं, जैसे किसी ने उन्हें छुआ हो।

पुरानी झाड़ी के पास एक टूटी हुई बेंच थी। पवन बोला:
“यही बेंच है जहाँ तिलोकिया की लाश मिली थी।”

अचानक एक ठंडी हवा का झोंका आया। और बेंच अपने आप हिलने लगी।

आयुष ने टॉर्च जलाया — लेकिन रोशनी एकदम फीकी हो गई।
टॉर्च में दिखा — एक बूढ़ा आदमी, गन्दे कपड़ों में, हाथ में कुदाल लिए... आंखें एकदम लाल... बाल बिखरे हुए... वह धीरे-धीरे उनकी ओर आ रहा था।

“मैं तिलोकिया हूँ... तुमने मेरी नींद क्यों तोड़ी?”

तीनों के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। भागना चाहा, मगर पैर जैसे ज़मीन से चिपक गए थे। तिलोकिया धीरे-धीरे करीब आया... और बोला:

“मेरे बाग़ में बिना इजाज़त कोई नहीं आता... अब तुम यहीं रहोगे... हमेशा के लिए।”

अचानक प्रिंस चिल्लाया और बेहोश हो गया। आयुष और पवन ने किसी तरह उसे उठाया और बाग़ से भागे।

जब वे गाँव पहुँचे, तो देखा — घड़ी रात के 2 बजा रही थी... लेकिन बाग़ से निकलने में उन्हें सिर्फ 10 मिनट लगे थे

अगले दिन प्रिंस को होश आया, लेकिन उसके बाल एकदम सफेद हो गए थे... और वह अब कुछ नहीं बोलता था...


आज भी कहते हैं गाँव वाले —
जो भी तिलोकिया के बाग में रात को गया... वो या तो पागल लौटा... या फिर कभी लौटा ही नहीं...


अगर तुम चाहो तो मैं इस कहानी के लिए एक डरावना पोस्टर या छोटा वीडियो स्क्रिप्ट भी बना सकता हूँ।

क्या तुम इस कहानी का अगला भाग भी चाहते हो?


हॉरर कहानी "तिलोकिया का बाग" की सीख (Message / Moral):

इस कहानी की सबसे बड़ी सीख यह है कि—

जो बातें वर्षों से पीढ़ियों के अनुभव से कही जाती हैं, उनका मज़ाक नहीं उड़ाना चाहिए।

कभी-कभी हम युवा जोश में यह सोच लेते हैं कि भूत-प्रेत, परंपरा या बुज़ुर्गों की कही बातें सिर्फ डराने के लिए होती हैं। लेकिन बहुत बार उन बातों के पीछे कोई गंभीर कारण या अनदेखा सच छिपा होता है।

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