एक संत थे। वे एक जाट के घर गए। जाट ने उनकी बड़ी सेवा की। संत ने उससे कहा की रोजाना नाम जप करने का कुछ नियम ले लो। जाट ने कहा की बाबाजी हमारे को वक़्त कहा मिलता हैं। संत ने कहा की अच्छा, रोजाना एक बार ठाकुर जी की मूर्ति का दर्शन कर आया करो। Moral Stories In Hindi
जाट ने कहा की मैं तो खेत में रह जाता हूँ, ठाकुरजी की मूर्ति गाँव के मंदिर में हैं, कैसे करूँ ? संत ने उसको कई साधान बताये की कोई न कोई नियम ले ले, पर वह यही कहता की यह मेरे से बनेगा नहीं। मैं खेत में काम करूँ या माला ले कर जाप करूँ। इतना समय मेरे पास कहाँ हैं ?
बाल-बच्चों का पालन-पोषण करना हैं ; आपके जैसा बाबाजी थोड़े हूँ की बैठकर भजन करूँ। संत ने कहा अच्छा तू क्या कर सकता हैं ? जाट बोला की मेरा एक पड़ोसी कुम्हार हैं, उसके साथ मेरी मित्रता हैं; खेत भी पास-पास में हैं और घर भी पास-पास में हैं; रोजाना नियम से एक बार उसको देख लिया करूँगा।
संत ने कहा ठीक हैं, लेकिन उसके देखे बिना भोजन मत करना।
जाट ने स्वीकार कर लिया। बाबाजी उस जाट के सेवा-सत्कार से खुश हुवे और फिर वहा से किसी और को शिक्षित कर चल दिए। इधर वह जाट ईमानदारी से बाबाजी द्वारा बताये नियम का पालन करने लगा। जब उसकी स्त्री कहती की रोटी तैयार हो गयी, भोजन कर लो तो वह चट बाड़ चढ़कर कुम्हार को देख लेता और भोजन कर लेता।
इस नियम में वह पक्का रहा। एक दिन जाट को खेत में काम करने के लिए जल्दी जाना था, इसीलिए उसकी स्त्री ने भोजन जल्दी तैयार कर दिया था। जाट ने भोजन करने से पहले बाड़ पर चढ़कर देखा तो कुम्हार नहीं दिखा। पूछने पर पता लगा की वह मिट्टी खोदने बाहर गया हैं !
जाट बोला की कहाँ मर गया, कम-से-कम देख तो लेता। अब जाट उसको देखनी के लिए तेजी से भागा। उधार कुम्हार को मिट्टी खोदते-खोदते एक हाँड़ी मिल गयी, जिसमे तरह-तरह के रत्न, अशर्फियाँ भरी हुई थी। उसके मन में आया की कोई देख लेगा तो मुश्किल हो जाएगी !
अतः वह देखने के लिए ऊपर चढ़ा तो सामने वह जाट आ गया ! कुम्हार को देखते ही जाट वापस भागा तो कुम्हार ने समझा की उसने वह हाँड़ी देख ली और अब वह आफत मचाएगा सबको बताएगा।
कुम्हार ने आवाज लगाईं की अरे, जा मत, जा मत ! जाट बोला की -'बस, देख लिया, देख लिया !'
कुम्हार बोला की अच्छा, देख लिया तो आधा तेरा, आधा मेरा,पर किसी से कहना मत ! जाट यह बात सुनकर रुक गया और फिर वापस आया तो सब बात समझ गया और उसको भी धन मिल गया।
उसके मन में विचार आया की संत से अपना मनचाहा नियम लेने में इतनी बात हैं, अगर सदा उनकी आज्ञा का पालन करूँ भगवान् के नाम का जाप करूँ तो कितना लाभ हैं ! ऐसा विचार करके वह जाट और उसका मित्र कुम्हार दोनों ही भगवान् के भक्त बन गए।
तात्पर्य यह हैं की हमें दृढ़ता से अपना एक उद्देश्य बना लेना चाहिए और ईमानदारी और निष्ठा के साथ उस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु नियमों का पालन करना हैं। ईमानदार से अनुशासन द्वारा पालन किये गए नियम हमेशा उत्तम फल को देने वाले होते हैं।
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