पैतृक संपत्ति पर बेटियों का बराबर हक

 स्वागत है हमारे ब्लॉग अपना पाठशाला में आज का शीर्षक है '' पैतृक संपत्ति पर बेटियो का बराबर हक''  के बारे में जानेंगे 
  सबसे पहले हम यह जानेंगे कि  यह शीर्षक आजकल चर्चा में क्यों में है हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने पैतृक सम्पत्ति को लेकर बेटियों के अधिकार पर फैसला दिया है अविभाजित हिंदू परिवार में पुत्री को पुत्र के सामान जन्म सिद्ध अधिकार है जिसके अंतर्गत यह बताया गया की 2005 से पहले जन्मे पुत्री को भी पैतृक सम्पति पर पूर्ण अधिकार है इस विधेयक को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा कुछ पॉइंट जरी किये गये है 

यदि यह फैसला 2005 से सम्बन्ध रखता है तो आज कल चर्चा में क्यों है 

  • 2015 के अपने ही निर्णय को इस बार उच्चतम न्यायलय ने बदला है 
  • 2005 में किये गए हिन्दू अधिनियम 1956 में किये गए संशोधनों का पूर्ववर्ती प्रभाव होगा 
  • बदलाव में यह स्पष्ट है की अब 2005 से पहले जन्मे पुत्री का अपने पिता के सम्पत्ति पर पूर्ण अधिकार होगा 

2015 का क्या निर्णय है 

  • प्रकाश बनाम फूलवती मामला में 2 जजों ने कहा था की यदि 9 सितम्बर 2005 से पहले पिता की मृत्यु हो चुकी है तो उसकी पुत्री को पिता के सम्पति में सामान अधिकार नहीं होगा  
  • यानि पुत्री को सह्दायिकी (coparcenary) का अधिकार नहीं होगा ? आपको ये बता की सह्दायिकी (coparcenary) का मतलब ( यदि किसी व्यक्ति के तीन पुत्र , तिन पुत्रिया तथा उसकी पत्नी भी हो तब उसकी मृत्यु के बाद उसके सम्पति में 3 पुत्रो , एक विधवा यानि उसकी पत्नी और और उसका स्वयं का पांच हिस्से होंगे और प्रत्येक को 1/5 हिस्सा मिलेगा यानि माता पिता का सम्पत्ति बेटियों को दिया जायेगा )
  • लेकिन 2018 के दनम्मा बनाम अमर मामले में सुप्रीम कोर्ट का आदेश आया की पिता के सम्पति पर सामान अधिकार होगा भले ही उनके पिता की मृतु 2001 से पहले ही क्यों न हुयी हो 
  • यानि कोर्ट का मानना है की क्यों न पिता की मृत्यु 9 सितम्बर 2005 से पहले भी हुयी हो तब भी बेटियों को सम्पत्ति पर पूरा अधिकार होगा 
  • अर्थात दनम्मा बनाम अमर मामले में बेटियों को सह्दायिक अधिकार प्राप्त हो गया 
अब बात दोनों पक्षों में अलग - अलग फैसला करने पर सुप्रीम कोर्ट के सामने संशोधित हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 धारा ६ की व्याख्या करने की चुनौती आ गयी कोर्ट यह फैसला साफ-साफ बताना था कि यह कानून पूर्ववर्ती अधिनियम का पालन करेगा अर्थात जिस पुत्री का जन्म 9 सितंबर 2005 से पहले हुआ है क्या उनको पिता की संपत्ति पर पूर्ण अधिकार होगा

हालिया निर्यण क्या है 

  •  सुप्रीम कोर्ट का फैसला है कि अविभाजित परिवार के पुत्रियों को पिता के सम्पति पर समान अधिकार है क्यों अधिकार पुत्री को जन्म से ही है इसलिए इस बात का कोई भी प्रभाव नहीं होगा की 9 सितंबर 2005 के पहले उसके पिताजी जीवित है या नहीं 
  •  सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीश मिस्टर अरुण मिश्रा अब्दुल नजीर तथा एन आर शाह के बैठक में यह फैसला किया गया कि अधिनियम 1956 के धारा 6 में साफ किया जाता है कि पुत्री को पुत्र के समान सह्दायिकी का समान अधिकार हो  चाहे उनका जन्म 2005 के पहले क्यों ना हुआ हो
  • कोर्ट ने यह भी साबित किया की किसी भी नवीन दस्तावेजों के बिना किसी भी प्रकार के बंटवारे को मान्यता नहीं दी जाएगी , जो मौखिक रूप से किया गया और जिसका पंजीकरण ना हुआ हो 
  • कोर्ट ने यह फैसला किया है कि इस प्रकार के जितने भी मामले हैं उन पर 6 महीने के अंदर कार्यवाही की जाएगी तथा उचित लोगों को सह्दायिकी का लाभ दिया जाएगा 

विधिक स्थिति क्या है 

  • 2005 में संसद ने हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम में कई बदलाव किये थे 
  • 9 सितम्बर 2005 से लागु हुआ संशोधन यानि इसी तारीख से हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम नए सिरे से लागु किया गया 
  • धरा -६ को नए रूप से लिखा गया तथा कई सरे नियम जोड़े गए जैसे 
  • पुत्र के सामान ही पुत्री भी जन्म से सह्दायिक बन जाएगी 
  • पुत्री को पिता के सामान पर सामान अधिकार होंगे जो वह तब उसके पास होती जब वह एक पुत्री होती 
  •  मित्क्षर विधि यानि की हिन्दू धर्म का विशेष विधान जिसके अनुसार एसे परिवार जिसमे बंटवारे न हुए हो उस परिवार में सम्पति का वारिस तय किया जाता है इसमें केवल पुरुषो ही केवल वारिस माना जाता है 
  • धारा -६ के खंड क अनुसार यदि किसी हिन्दू की मृत्यु हिन्दू उत्तराधिकार 2005 के बाद होता है तो उसमे पुत्री को सम्पत्ति का अधिकार पुत्र के बराबर ही दिया जायेगा 
  • यह संशोधन जम्मू और कश्मीर में भी लागु कर दिया गया है 

सह्दायिकी सम्पत्ति क्या है 

  • सह्दायिकी संपत्ति वो होती है जो किसी पुत्र को उसके पिता ,दादा या परदादा की संपत्ति उसको विरासत में मिलती है 
  • इस तरह के संपत्ति पर पूर्ण रूप से मालिकाना हक़ होता है इसका बटवारा करने का स्वामित्व सिर्फ सहदायिक के पास होता है 
  • 2005 के संशोधन से पहले इसमें केवल पुरुषो को शामिल किया जाता था परन्तु अब नए अधिनियम के साथ यह बदल दिया गया है जिसमे घर की बेटियों , पोतियों आदि को भी सह्दायिकी का अधिकार दिया गये है 
उम्मीद करते है की यह पोस्ट शिक्षापूर्ण लगा होगा और आपको सह्दायिकी अधिकार के बारे में समझ आ गया होगा यदि आप चाहते है किसी और विषय के बारे में व्याख्या किया जाये तो comment box में अपना सुझाव जरुर दे 
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