विश्वास अपना-अपना



 माँ की कहानियों का संसार असीम था।



पिताजी का ध्यान अंग्रेजी और गणित की पढ़ाई पर रहता, तो माँ का ध्यान जिंदगी की पढ़ाई पर। 


पिताजी ने गणित की पढ़ाई के लिए मुझे ओम प्रकाश मास्टर साहब के पास भेजना शुरू किया था। मास्टर साहब मुझे बीजगणित पढ़ाते, मैं समझता, पर अगले दिन भूल जाता। मास्टर साहब ने पिताजी को बताया था कि संजय बीजगणित के सवाल भूल जाता है। 


जिन दिनों मैं बड़ा हो रहा था, उन दिनों हॉर्लिक्स का बड़ा क्रेज था। आटा जैसे पाउडर को दूध में डाल कर जिन बच्चों को पीने को दिया जाता, उनके बारे में माना जाता था कि सामान्य बच्चों की तुलना में उनमें अधिक बल और बुद्धि का संचार होगा। 


पिताजी बाजार से हॉर्लिक्स ले आए थे। मुझे हॉर्लिक्स का स्वाद अच्छा नहीं लगता था। पिताजी माँ को समझा रहे थे कि हॉर्लिक्स पीने से बच्चों का दिमाग तेज होता है। 


माँ हँसने लगी थी। 


माँ ने पिताजी से कहा कि आप भी दुकानदार की बातों में आ गए। पिताजी ने माँ के सामने दलील रखी कि ओम प्रकाश मास्टर ने कहलवाया है कि संजू को बीजगणित के पाठ याद नहीं रहते। 


“इसका मतलब ये हुआ कि जो इस बोतल में बंद पाउडर को पेट में डाल लेगा, उसे सब याद रहने लगेगा?” 


“हाँ। इसमें ढेरों ऐसी चीजें हैं, जिनसे दिमाग तेज होता है। याददाश्त अच्छी होती है।” 


माँ को मैं पहली बार पिताजी के तर्कों को काटते हुए सुन रहा था। 


माँ कह रही थी, “यह तो पढ़ाने वाले की कमी है। वो विषय को रोचक तरीके से नहीं पढ़ा रहे। किसी विषय को अगर बच्चों को रोचक तरीके से पढ़ाया जाए, तो वो बच्चा पाठ को कभी भूल ही नहीं सकता। मैं इसे रोज एक कहानी सुनाती हूँ, आप कोई भी कहानी उससे पूछ लीजिए, उसे वो पूरी कहानियाँ याद होंगी। याद क्या होंगी, ताउम्र याद रहेंगी। आदमी को दूसरे की चीजों पर भरोसा करने की जगह अपनी चीजों पर भरोसा करना चाहिए।’’ 


पिताजी माँ की बातें ध्यान से सुन रहे थे। 


माँ ने बात-बात में एक कहानी सुनानी शुरू कर दी। 


एक बार एक धर्मशाला में दो यात्री ठहरे थे। एक यात्री ने बाजार जाकर एक दीपक खरीदा, ताकि रात में उसका सफर आसान हो सके। दूसरे यात्री ने सोचा कि उसे दीपक खरीदने की क्या जरूरत है। इसी दीपक की रोशनी से उसका भी काम चल जाएगा। 


जिस यात्री ने दीपक खरीदा था, वो रात में सफर पर निकल पड़ा। दूसरा यात्री भी उसके साथ ही निकल पड़ा। कुछ दूर चलने के बाद जिसके हाथ में दीपक था, वो दूसरी ओर मुड़ गया। अब बिना दीपक वाले यात्री के सामने मुसीबत आ गई कि वो किधर जाए। रात गहरी थी। बहुत अँधेरा था। जाहिर है, उसे रुकना पड़ा। सुबह का इंतजार करना पड़ा। उसे रुकना पड़ा क्योंकि वो दूसरे के दीपक के भरोसे सफर पर निकला था। 


बहुत छोटी सी इस कहानी से माँ पिताजी को समझा पाने में कामयाब रही कि भरोसा खुद के दीपक पर करना होता है। 


माँ पिताजी को समझा पाई थी कि अगर पढ़ाने वाला विषय को रोचक ढंग से पढ़ाए तो बच्चा पढ़ भी लेगा और समझ भी जाएगा। 


माँ को अपने दीपक पर भरोसा था। पिताजी को कुछ देर के लिए ही सही, पर हॉर्लिक्स के विटामिन पर भरोसा हो गया था। 


“नित नहावन ते प्रभु मिलें, तो मछली बने संसार। 


पाथर पूजन ते हरि मिलें, तो मैं पूजूँ पूरो पहाड़।।” 


रोज नहाने से ही अगर प्रभु मिलने लगें तो आदमी मछली बन जाए, जो सारा दिन पानी में रहती है। और अगर पत्थर पूजने से प्रभु मिलते हों, तो मैं तो पूरा पहाड़ ही पूजने को तैयार हूँ। 


ओम प्रकाश मास्टर का पढ़ाया मैं भूल गया। पर माँ का पढ़ाया तो मेरी जिंदगी में दीपक बनकर साथ चल रहा है। 


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