✨ परिचय
नालंदा विश्वविद्यालय भारत की प्राचीनतम और विश्वविख्यात शिक्षा नगरी थी, जिसकी स्थापना 5वीं शताब्दी में गुप्त सम्राट कुमारगुप्त प्रथम ने की थी। यह विश्वविद्यालय शिक्षा का अद्वितीय केंद्र था जहाँ भारत ही नहीं बल्कि चीन, जापान, कोरिया, तिब्बत, मंगोलिया, श्रीलंका और
अन्य देशों से भी विद्यार्थी पढ़ने आते थे।
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प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय(Computer Based Image) |
🏛 इतिहास और स्थापना
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नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना लगभग 450 ईस्वी में हुई।
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इसमें 10,000 से अधिक विद्यार्थी और लगभग 2,000 शिक्षक हुआ करते थे।
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यह बौद्ध धर्म, दर्शनशास्त्र, गणित, खगोलशास्त्र, चिकित्सा, व्याकरण, कला, साहित्य और विज्ञान का प्रमुख केंद्र था।
📚 शिक्षा व्यवस्था
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यहाँ आठ विशाल भवन, दस मंदिर और कई उपवन थे।
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प्रत्येक छात्र के लिए अलग-अलग आवासीय सुविधा थी।
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शिक्षा प्रणाली बेहद सख़्त थी और विद्यार्थियों को प्रवेश परीक्षा पास करनी पड़ती थी।
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प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग और इत्सिंग ने भी यहाँ शिक्षा प्राप्त की और अपने ग्रंथों में नालंदा की महिमा का वर्णन किया।
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ह्वेनसांग और इत्सिंग (computer Based Image) |
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1193 ईस्वी में तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय को जला दिया।
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यहाँ की लाइब्रेरी (धर्मगंज) में लाखों पांडुलिपियाँ थीं, जो कई महीनों तक जलती रहीं।
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इस हमले के बाद यह विश्वविख्यात विश्वविद्यालय पूरी तरह नष्ट हो गया।
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बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय को जला दिया। |
🌱 पुनर्निर्माण और आधुनिक नालंदा
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2006 में भारत सरकार ने नालंदा विश्वविद्यालय को पुनर्जीवित करने का निर्णय लिया।
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वर्तमान में यह विश्वविद्यालय राजगीर, बिहार में स्थित है और एक अंतरराष्ट्रीय शिक्षा केंद्र के रूप में विकसित किया जा रहा है।
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यहाँ विभिन्न देशों से विद्यार्थी पढ़ाई के लिए आते हैं।