🌄 अरावली पहाड़ियाँ — आज का हाल और वास्तविक परिस्थिति (2025)
अरावली पहाड़ियाँ (Aravalli Hills) भारत की एक पुरानी पर्वत श्रृंखला हैं, जो लगभग 700 किलोमीटर तक फैली हुई हैं और राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली और गुजरात जैसे राज्यों से होकर गुज़रती हैं। यह दुनिया की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखलाओं में से एक मानी जाती है और पर्यावरण, भूजल, जलवायु और जैव विविधता के लिए बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
🌱 ऐतिहासिक और पारिस्थितिक महत्व
📌 प्राकृतिक अवरोध: अरावली थार रेगिस्तान से उठने वाली धूल और रेत को रोकती है, जिससे दिल्ली-NCR जैसे इलाकों में वायु गुणवत्ता और मौसम संतुलित रहता है।
📌 जल स्रोत और भूजल बहाली: बारिश का पानी पहाड़ों के भंगुर चट्टानों से नीचे जाकर भूजल स्तर को बढ़ाता है, जो आसपास के गांवों व शहरों के लिए पानी का स्रोत है।
📌 जैव विविधता: यहाँ वनस्पति और जंगली जीवों की विविध प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनके लिए यह एक आसान पारिस्थितिक स्थल है।
⚠️ 2025 में मुख्य मुद्दे — वास्तव में क्या हो रहा है?
🔥 1. नया कानूनी विवाद और “100 मीटर नियम”
2025 के अंत में भारत के सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की उस परिभाषा को स्वीकार किया है जिसमें अब केवल वह भू-भाग अरावली के रूप में गिना जाएगा जो स्थानीय आसपास से 100 मीटर ऊँचा हो। इस फैसला से पर्यावरण विशेषज्ञ और कार्यकर्ता चिंतित हैं क्योंकि इससे लगभग 90% तक वास्तविक अरावली भूमि संरक्षण से बाहर हो सकती है, जो अब कानून के दायरे में नहीं आएगी।
👉 इसका मतलब यह है कि छोटी-छोटी पहाड़ियाँ, जो हवा, पानी और जैव विविधता के संतुलन के लिए महत्वपूर्ण हैं, अब औपचारिक संरक्षण से बाहर हो सकती हैं।
🪓 2. अवैध खनन और पर्यावरणीय क्षति
📍 Drone एवं सर्वेक्षणों से पता चला है कि राजस्थान के भिलवाड़ा और हरियाणा तथा नूह के पहाड़ियों में कहाँ-कहाँ अवैध खनन हो रहा है — जो कि भूमि को नष्ट कर रहा है और वहाँ के पारिस्थितिक तंत्र को लगातार नुकसान पहुँचा रहा है।
➡️ सुप्रीम कोर्ट ने कई बार अनियमित खनन पर रोक लगाई हुई है, परंतु इसके बावजूद अवैध गतिविधियाँ जारी हैं।
🚧 3. अवैध निर्माण और घुसपैठ
दिल्ली-NCR के आस-पास के इलाकों, जैसे कि गुड़गांव के बाँधवारी इलाके में बिना अनुमति के निर्माण, दीवारें और पेड़ों की कटाई जैसी गतिविधियाँ रिपोर्ट की गई हैं। इसके खिलाफ नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने सरकार को नोटिस भी भेजा था।
🌳 4. संरक्षण गतिविधियाँ और पहलें
कुछ सकारात्मक खबरें भी हैं:
✨ हरियाणा सरकार ने लगभग 580 एकड़ भूमि को पुनर्स्थापना (restoration) के लिए चिन्हित किया है और वहाँ पौधे लगाकर पुनरूत्थान करने की योजना बनाई है।
✨ इससे पहले भी लाखों हेक्टेयर degraded भूमि को ठीक करने के लिए बड़े-पैमाने पर वन पुनर्वास (forest landscape restoration) कार्यक्रम की घोषणा हुई थी।
💡 असल में समस्या क्यों गंभीर है?
🔸 जब अरावली पहाड़ियाँ कमजोर होती हैं या उनका संरक्षण खो जाता है, तो:
✔ हवा का धूल-भरा प्रवाह बढ़ता है, जिससे प्रदूषण और भी बुरा होता है।
✔ भूजल स्तर और नदियों-झीलों में पानी कमी हो जाती है।
✔ जैव विविधता गिरती है और वन्यजीवों के आवास घटते हैं।
🔸 विशेषज्ञ कहते हैं कि हल्की-सी ऊँचाई वाली छोटी पहाड़ियाँ भी वायु, पानी और पारिस्थितिकी के लिए उतनी ही ज़रूरी हैं जितनी बड़ी पहाड़ियाँ।
📝 निष्कर्ष (Conclusion
आज की तारीख में अरावली पहाड़ियाँ सिर्फ भू-भाग नहीं हैं — यह प्राकृतिक रक्षा ढाल, जल स्त्रोत, वायु संतुलन और जीवन-समर्थक पारिस्थितिकी हैं। लेकिन 2025 में जो कानूनी और पर्यावरणीय चुनौतियाँ उत्पन्न हो रही हैं, वे इसे गंभीर जोखिम की ओर ले जा रही हैं। हमें सिर्फ आज के लिए नहीं बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए इस अद्भुत प्राकृतिक धरोहर को बचाने के लिए जागरूकता, संरक्षण नीतियाँ और समुदाय भागीदारी की जरूरत है। 🌿


Right 👍
ReplyDeleteRight sir
ReplyDelete